Tuesday, June 15, 2010

"माय नेम इज़ क्लीयर्ड?"

"माय नेम इज़ क्लीयर्ड?" यह सवाल उस राजनेता ने पूछा जो केंद्र में टेलिकॉम मिनिस्टर बनना चाहता था। सवाल पूछने वाले का नाम था डीएमके सांसद ए. राजा और जिससे यह सवाल पूछा गया उसका नाम था नीरा राडिया। यह सवाल उस रात ए.राजा ने नीरा राडिया से की, जिसके एक दिन पहले कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि किस पार्टी के किस प्रतिनिधि को किस विभाग का प्रभार दिया गया है। यह बेहद गुप्त होता है। लेकिन भारत में इसकी गुप्तता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उंचे रसूख रखने वाली महिला को यह पता होता है कि फलां सांसद को फलां विभाग का प्रभार दिया गया है। यह बात ए. राजा जैसे व्यक्ति के लिए भले ही सुखदायी हो, लेकिन देश के एक आम जन के लिए बेहद दुःखदायी है। आप जानना चाहेंगे कि भला नीरा राडिया जैसी महिला को इस बात का पता कैसे लगा?  तो आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ए. राजा  को केवल इस बात की ही जानकारी नहीं थी कि उन्हें टेलिकॉम मिनिस्ट्री मिली है, बल्कि उन्हें यह विभाग भी नीरा राडिया की कृपा दृष्टि से ही मिल पाई है।

अब शायद नीरा राडिया की ताक़त का अंदाज़ा आपको हो चुका होगा। लेकिन नीरा राडिया और ए. राजा दोनों के लिए यह बदकिस्मती रही कि उनके टेलिफ़ोन को आयकर विभाग और सीबीआई द्वारा काफ़ी पहले से टेप किया जा रहा था। दरअसल, आयकर विभाग के अधिकारियों को यह पहले से पता था कि नीरा राडिया ने कुछ धांधली की है। राडिया को बिचौलिए की भूमिका में पाकर उसके ख़िलाफ़ 21 अक्टूबर 2009 को सीबीआई ने आईपीसी की धारा 120 बी के सेक्शन 13/2,13/1 डी के तहत डीएआई 2009 ए 0045 के तहत मामला दर्ज़ किया। साथ ही उसकी कंपनी नोएसिस कंसल्टेंसी पर आपराधिक साज़िश का मामला दर्ज़ करते हुए, उसके ख़िलाफ़ जांच शुरू की। इसी कड़ी में सीबीडीटी की विशेष सूचनाओं के आधार पर नीरा राडिया के टेलिफ़ोन जांच के घेरे में लाए गए और टेलिफ़ोन टेप करने के लिए गृह सचिव से अनुमति ली गई। यह कई लोगों के लिए बदकिस्मती रही कि यह ऑडियो टेप अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल हेडलाइंस टुडे के हाथ लग गई। नतीजा आपके सामने है। कई सफ़ेदपोशों, पत्रकारों व बिजनेसमैनों के कारनामों का खुलासा हुआ।

टेप का खुलासा
Here are excerpts from a conversation recorded on May 24, 2009 at 11.05 am.
Raja- My name is cleared?
Radia- Yeah, your case was cleared last night itself. No, what is happening with Daya?
Raja- Textiles or fertilisers?
Radia- Not for Daya though, Azhagiri or Daya only one can come in?
Raja- No, two can come...
Radia- Both?
Radia- Baalu, will be the problem, I hope.
Radia- It will be difficult for the leader to justify three family members.
Raja- (laughs) Yeah, but everybody knows...
Radia- No she said that, Kani told me last night, that is what her father told her yesterday, that for him to justify three family members would be very difficult; he recognises that problem...
Raja- Let us see what we can do...let us fight.

हालांकि यह संयोग था कि राडिया की फ़ोन टैपिंग की छह माह की अवधि के दौरान ही देश में आमचुनाव हुए और सरकार बनी। सरकार के पास यह जानकारी काफ़ी पहले से थी, लेकिन उसने राजनेताओं को बचाने के लिए जान-बूझकर कुछ नहीं किया। उल्टे उसने जांच में सहयोग कर रहे सीबीआई के एंटी करप्शन ब्रांच के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस विनित अग्रवाल का तबादला कर दिया।

नीरा राडिया का परिचय है- दुनिया की सबसे बड़ी दलाल, जिसे हर असंभव काम को संभव बनाने में महारथ हासिल है। बिल्कुल ही पेशेवराना ढंग से दलाली के हर काम को यह ख़ूबसूरत महिला बेहद ख़ूबसूरती से अंजाम देती है। टाटा, बिड़ला, मित्तल समेत दुनिया भर के कई कॉरपोरेट घरानों में अपनी ख़ास पहचान रखती है। दरअसल, नीरा राडिया चार कंपनियां- नोएसिस कंसल्टिंग, विटकॉम, न्यूकॉम कंसल्टिंग और सबसे पुरानी वैष्णवी कॉरपोरेट कंसल्टेंट प्राइवेट लिमिटेड के ज़रिए देश के कॉरपोरेट घरानों को सरकार से लाभ कमाने अर्थात उसे कैसे चूना लगाना है इसके लिए सलाह देती हैं।

राजा को क्यों चाहिए टेलिकॉम मिनिस्ट्री?
यह एक सोची समझी राजनीति के तहत हुआ कि टेलिकॉम मिनिस्ट्री का प्रभार राजा को ही दिया जाए। हालांकि पीएम मनमोहन सिंह कभी भी ए.राजा को यह डिपार्टमेंट तो क्या मिनिस्ट्री में ही जगह देने के कतई पक्ष में नहीं थे, क्योंकि मनमोहन सिंह ख़ासकर टी.आर. बालू और ए. राजा की दागदार छवि से अच्छी तरह से वाकिफ़ थे। लेकिन नीरा राडिया जैसे बिचौलिए, कॉरपोरेट घरानों का दबाव और राडिया के सहयोगी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुछ पत्रकारों (एनडीटीवी की मशहूर पत्रकार बरखा दत्त व हिंदुस्तान टाइम्स के सीनियर पत्रकार वीर सांघवी समेत कई और पत्रकार जिनके राज़ खुलने बाकी हैं...) के प्रभाव के आगे मनमोहन सिंह को झुकना पड़ा और हुआ वही, जो दलालों का समूह चाहता था। दरअसल, सारा खेल 3-जी स्पेक्ट्रम नीलामी के इर्द-गिर्द घूम रहा था, जिसे ए. राजा को अंजाम देना था। क्योंकि नीलामी की सारी प्लानिंग देश को दूरसंचार सेवा प्रदान करने वाले कॉरपोरेट घरानों ने बुन रखी थी। ए. राजा द्वारा की गई 2-जी स्पेक्ट्रम नीलामी से देश को भले ही भारी नुक़सान उठाना पड़ा, लेकिन देश के कॉरपोरेट घराने, बिचौलिए और ख़ुद ए.राजा मालामाल हो गए।

2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला
- आठ कंपनियों को बिना टेंडर बुलाए पहले आओ पहले पाओ के आधार पर औने-पौने दामों पर लाइसेंस बांट दिए गए।
- लाइसेंस बहुत ही कम क़ीमत पर 2001 के भाव के अनुसार दिए गए।
- लाइसेंस के लिए 1 अक्टूबर 2007 अंतिम तिथि थी, लेकिन 24 सितंबर, 2007 को इसे 25 दिसंबर 2007 कर दिया गया।
   
सही क्या था?
टेलिकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (ट्राई) नें 2003 में जारी निर्देशों में ही नए लाइसेंस नीलामी प्रक्रिया के तहत जारी करने की सिफ़ारिश की थी, लेकिन ए.राजा ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने लाइसेंस को पुराने भाव पर ही बेचे, जबकि ऐसा न करके वर्तमान बाज़ार भाव और नीलामी के माध्यम से लाइसेंस बेचा जाना था।

किसके हुए वारे-न्यारे?
संचार मंत्री ए. राजा ने सभी मांगों को नज़रंदाज़ करते हुए स्वान, यूनिटेक, स्पाइस, लूप टेलिकॉम, श्याम टेलीलिंक और आइडिया सेल्यूलर को स्पेक्ट्रम आवंटित कर दिया।
- लाइसेंस से मिलने वाली राशि - 10,772 करोड़
- मिलना चाहिए था - 70,022 करोड़
- घोटाला - 60,000 करोड़

कागज़ से कमाए अरबों!
स्वान को 14 सर्कलों के लिए सरकार को 1537 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा था। जबकि उसने लाइसेंस मिलने के फ़ौरन बाद ही 45 % हिस्सेदारी संयुक्त अरब अमीरात की कंपनी एतिसलत को 90 करोड़ डॉलर यानी 4050 करोड़ रुपये में बेच दी। वहीं यूनटेक वायरलेस लिमिटेड को 22 सर्कलों के लिए सरकार को 1651 करोड़ रुपये भुगतान करना पड़ा था। जबकि उसने भी लाइसेंस मिलने के फ़ौरन बाद ही 67 % हिस्सेदारी नार्वे के टेलनॉर ग्रुप को 6120 करोड़ रुपये में बेच दी। विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि स्वान व यूनिटेक द्वारा हिस्सेदारी बेचने की रकम ध्यान में लें, तो सारे लाइसेंसों की मिली-जुली रकम 70,022.42 करोड़ रुपये होती है। यह रकम सरकार को मिलनी थी, जो बिचौलियों और कॉरपोरेट घरानों के हिस्से में चली गई।

कारण क्या थे?
देश के इतने बड़े घोटाले के पीछे एक छोटा सा कारण था। दरअसल, ए. राजा की पत्नी ग्रीन हाउस प्रमोटर्स नाम की एक कंपनी चलाती है, जिसकी डायरेक्टर वह ख़ुद है। स्वान ग्रीन हाउस प्रमोटर्स में 1000 करोड़ रुपये का निवेश करने वाली थी, जिसके लिए राजा को यह खेल खेलना पड़ा। इसके अलावा और भी कई कारण हैं, जो फ़िलहाल अज्ञात हैं। ये कारण उचित जांच के बाद ही सामने आ पाएंगे। लेकिन उचित जांच कभी नहीं होगी। क्योंकि इतने बड़े घोटाले के उजागर होने के बाद बी ए. राजा अपनी कुर्सी पर डट कर बैठे हुए हैं और भ्रष्टाचार की भट्ठी को आंच देने में लगे हुए हैं।

सुधांशु चौहान