Sunday, November 8, 2009

दहशत के 5 घंटे

देश की सबसे महत्वपूर्ण ट्रेन राजधानी एक्सप्रेस पश्चिम बंगाल के झारग्राम में माओवादियों के कब्जे में करीब 5 घंटे तक रही। इस दौरान ट्रेन में सवार कुल 12 सौ यात्री उनके कब्जे में थे। उन सभी का एक-एक पल साल की तरह गुजर रहा था। मां को फिक्र थी कि शायद आज वह अपने बेटे को हमेशा के लिए खो देगी, उधर किसी के भाई को लग रहा था कि उसकी बहन के साथ सशस्त्र नक्सली कुछ ऐसा-वैसा न कर दें। सभी को खुद के साथ-साथ अपनों की चिंता खाए जा रही थी। उधर मिडिया से यह खबर आग की तरह फैल गई। पूरे देश में त्राहिमाम मच गया। कोई सुरक्षा व्यवस्था पर दोष मढ़ रहा था, तो कोई सरकार की नीतियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहा था।
दहशत के वो पल
किसी भी अनहोनी से अंजान ट्रेन के ड्राइवर के. आनंद राव अपनी धुन में मगन, ट्रेन को हवा की तरह हांके जा रहे थे, लेकिन झारग्राम के पास दूर से ही पटरी पर लाल झंडा और कटे हुए पेड़ के हिस्से देखकर उसके हाथ-पांव इमरजेन्सी ब्रेक पर अचानक ही चले गए। पहिये की चिंचियाहट के साथ हवा से बातें करती ट्रेन कुछ ही पलों में झारग्राम स्टेशन से आगे घनघोर जंगल में खड़ी थी। आगे के खतरे से अंजान लोग अपनी धुन में मगन थे। लेकिन अचानक उनकी नजरें सामने के दृश्य को देखकर जैसे पथरा सी गई। खौफ से उनके रोएं खड़े हो गए। उन्हें लगा कि बस अब कुछ ही पलों में उनकी कहानी खत्म होने वाली है। आखिर क्या देखकर उनके शरीर में भय की सिहरन सी दौड़ गई ?
मौत की आहट
वीआईपी ट्रेन के वीआईपी पैसेंजर की आंखें खिड़की के बाहर मौजूद दृश्यों को देखकर, मानो फटी की फटी रह गई। तीर-कमान, कुल्हाड़ी, तलवार, बरछी और भाले जैसे हथियारों से लैस आदिवासियों को देखकर लोग भय से कांपने लगे। भय तब कई गुणा और बढ़ गया, जब अचानक उनकी खिड़की के शीशे चकनाचूर होने लगे। मौत की आहट तब स्पष्ट सुनाई देने लगी, जब जबर्रदस्ती उनकी बोगी के दरवाजे खुलवा लिए गए। उनके सामने सैंकड़ो माओवादी मौत का साक्षात रूप धरे खड़े थे। यात्रियों को यही प्रतीत हो रहा था कि बस पल भर में उन्हें लूटकर उनसब को मौत की नींद सुला दी जाएगी। माओवादी सबको नीचे उतरने का आदेश देने लगे। न चाहकर भी लोगों को तलवार की धार देखकर वैसा ही करना पड़ा, जैसा उन्हें कहा गया। हालांकि धीरे-धीरे माओवादियों की उग्रता धीमी पड़ गई। उन्होंने किसी भी यात्री को चोट नहीं पहुंचाई। हां ट्रेन से खान-पान की सारी चीजें लूट ली गईं। एक यात्री राकेशचक्रवर्ती ने कहा, 'जैसे कहा, वैसे करते गए और बच गए'।
सलामती की कीमत
माओवादी नेता किशन जी ने कुल 12 सौ यात्रियों की सलामती की कीमत के रूप में कुख्यात नक्सली नेता छत्रधर महतो की रिहाई की मांग रखी, जिसे मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने एकसिरे से ठुकरा दिया। हालांकि माओवादियों को यकीन था कि थाना इंचार्ज के बदले महिला माओवादियों की तरह ही यह मामला भी आसानी से निबट जाएगा। लेकिन बुद्धदेव के रवैये को देखते हुए माओवादियों ने भांप लिया था कि इस बार उनकी नहीं चलने वाली। इस दौरान, सीआरपीएफ के जवान मौके पर पहुंच गए और माओवादियों को खदेड़कर ट्रेन को उनके कब्जे से छुड़ाकर उसे दिल्ली के लिए रवाना कर दिया गया।
लगी ममता हित साधने में
जहां भी यह खबर पहुंची कि दिल्ली-भुवनेश्वर राजधानी एक्सप्रेस को माओवादियों ने बंधक बना लिया है, सभी अपने तरफ से यात्रियों की सलामती के लिए दुआ मांग रहे थे। लेकिन समाज का एक वर्ग ऐसा भी था, जो 12 सौ यात्रियों की जिंदगी पर राजनीति की रोटी सेंक रहा था। वे थी देश की रेल मंत्री ममता बनर्जी और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य। उन्हें यात्रियों की जान से ज्यादा पश्चिम बंगाल के सरकार की चिंता सता रही थी। जब सारा देश यात्रियों की सलामती के लिए दुआएं कर रहा था, तब ममता पश्चिम बंगाल सरकार की बर्खास्तगी की मांग कर रही थी। ऐसे वक्त में उनकी केन्द्र सरकार से यह मांग कितना उचित है, इसका फैसला तो जनता ही करेगी, क्योंकि वे जनता की प्रतिनिधि हैं !
अंदर की बात
दरअसल, मुद्दा यह है कि पश्चिम बंगाल की सरकार पर ममता ने यह आरोप लगाया था कि बुद्धदेव सरकार की माओवादियों से सांठ-गांठ है। इसीलिए उन्होंने माओवादियों की बात को तुरंत मानकर महिला नक्सलियों को जमानत पर छुड़वा दिया था। यहां तक कि ममता ने कहा है कि माकपा-माओवादी भाई हैं। जब बुद्धदेव से इस बाबत बात की गई, तो उन्होंने इसे खारिज करते हुए बकवास बताया।

. अब सवाल यह है कि अगर पश्चिम बंगाल के राज्य सरकार के किसी प्रतिष्ठान में ऐसी घटना घटती तो- क्या बुद्धदेव इतनी जल्दी में माओवादियों को ना करने का कदम उठाते ?
. ममता को ऐसी विपत्ति की घड़ी में बुद्धदेव सरकार से बातचीत करनी चाहिए थी याउन्हें बर्खास्त करने की मांग करनी चाहिए थी ?
. क्या यात्रियों की जान इतनी सस्ती है कि वे ममता और बुद्धदेव सरकार की राजनीति के बलि का बकरा बनें ?

सुधांशु चौहान

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