Monday, November 16, 2009

तुम्हें सब है पता मेरी मां...?

“ ...मां, मुझे माफ कर दो कि मैंने तुम्हें इस अग्नि परीक्षा मे धकेल दिया है। मैं तुम्हें भरोसा दिलाता हूं कि मैंने कुछ भी गलत नहीं किया। शायद ये मेरी किस्मत थी। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। मैं जानता हूं कि मै जो करने जा रहा हूं, वह तुम मुझे कभी नहीं करने दोगी। जब तक तुम यह लेटर पढ़ रही होगी, मैं जा चुका होऊंगा।” मीडिया पर हमला बोलते हुए उसने लिखा कि “ मीडिया ने मेरे खिलाफ एकतरफा राय बनाई है, बिना किसी सच्चाई के...वो बहुत पावरफुल हैं, मुझे जीने नहीं देंगे। अगर मैं आपके आस पास रहा तो आपकी जिंदगी भी नरक हो जाएगी। मैं सरेंडर कर रहा हूं, पता नहीं आपको देख भी पाऊंगा या नहीं, लेकिन आपके सिखाए आदर्शों पर चलने की कोशिश करूंगा।” यह किसी इमोशनल फिल्म का डायलॉग नहीं है, जिसमें एक आदर्श बेटा अपनी मां को असामाजिक लोगों से बचाने के लिए खुद को पुलिस के हाथों सरेंडर कर रहा है। वास्तव में यह एक चिट्ठी है, जिसे मनु शर्मा उर्फ सिद्धार्थ वशिष्ठ ने तिहाड़ जेल में सरेंडर करने के पहले अपनी मां के नाम लिखा है।
कौन है मनु शर्मा ?
संक्षेप में कहें, तो मनु शर्मा देश के पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के नाती हैं। वैसे चंडीगढ़ का रहने वाला यह शख्स कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विनोद शर्मा का बिगड़ैल शहजादा है जो शराब, शवाब और कवाब का शौकीन है। दिल्ली की हर हाई-फाई पार्टी में शिरकत करना इसका शौक है। अरबों की संपत्ति में खेलता है यह शख्स। 
क्या हुआ उस रात ?
आपको याद होगा, तारीख 29 अप्रैल 1999
जी हां! वही मनु शर्मा, जिसने 29 अप्रैल 1999 की रात लगभग 2 बजे मॉडल जेसिका लाल की गोली मारकर हत्या कर दी थी। वह भी महज एक पैग शराब की खातिर। इस हत्याकांड का गवाह बना कुतुब कोलोनेड स्थित टेमेरिंड कोर्ट बार, जहां यह संगीन वारदात हुई। हत्या के लिए मनु ने दो गोलियां चलाई, जिसमें से एक छत से टकराई और दूसरे की शिकार जेसिका हुई।
हत्या में चार रसूखदार
हालांकि यह अलग बात है कि हत्या प्री प्लैन्ड नहीं था, लेकिन गुनाह तो गुनाह होता है। इस रात मनु के साथ कुल तीन और लोग थे, जो उसके इस गुनाह में बराबर के भागीदार थे। वे थे- कोका कोला कंपनी बॉटलिंग इंडिया के जनरल मैनेजर अमरदीप सिंह गिल उर्फ टोनी, इसी का एक दोस्त आलोक खन्ना और चौथा सबसे अहम व रसूखदारों में से एक तत्काल राज्य सभा के सदस्य डीपी यादव का बेटा विकास यादव। जी हां ! वही विकास यादव जिसने बड़ी ही बेरहमी से अपनी बहन के पुरूष मित्र नीतीश कटारा की हत्या की। यानी, जेसिका की हत्या के इस गुनाह में चार रसूखदार शामिल थे। वारदात के तुरंत बाद जेसिका को सफदरगंज इंक्लेव के अश्लोक हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन केस गंभीर होने के कारण थोड़ी ही देर में जेसिका को अपोलो हॉस्पिटल भेज दिया गया, जहां उसकी मौत हो गई। वारदात के फौरन बाद, चारों फरार हो गए और इसी के साथ गवाहों व सबूतों के साथ छेड़छाड़ शुरू हो गई।
शिकंजा ! लेकिन ढीला पड़ गया
बार की मालकिन बीना रमानी ने केस दर्ज कराई। 4 मई को आलोक खन्ना और टोनी को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस की दबिश के करण, 19 मई को विकास यादव ने दिल्ली पुलिस के हेडक्वार्टर में सरेंडर कर दिया। 3 अगस्त 1999 को दिल्ली पुलिस ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के सामने इस केस की चार्ज शीट दाखिल की। इसमें मनु शर्मा के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 201, 120(b) तथा आर्म्स एक्ट 24,54,व 59 के तहत मुख्य अभियुक्त बनाया गया। जबकि अन्य गुनहगारों में विकास यादव, टोनी, आलोक खन्ना, श्याम सुंदर शर्मा, क्रिकेटर युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह, अमित झिंगन, हरविंदर चोपड़ा, राजा चोपड़ा, विकास गिल, रवींद्र कृष्ण सुडान व धनराज के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 201, 212, 120(b) के तहत मामला दर्ज किया गया। पुलिस के सामने मनु शर्मा ने रिकॉर्डेड बयान में यह स्वीकार किया कि उसी ने जेसिका लाल की हत्या की। इस रिकॉर्ड को टीवी चैनल एनडीटीवी पर प्रसारित भी किया गया। लेकिन कोर्ट में अपने इस बयान से वह मुकर गया।
हत्या से तकदीर बदली
इस केस का ट्रायल अगस्त 1999 में शुरू हुआ। लेकिन इसके चार मुख्य गवाह, जिसमें से एक श्यान मुंशी भी था जो मॉडलिंग में करियर के लिए जद्दोजहद कर रहा था और जेसिका का दोस्त भी था। वह भी पुलिस के सामने दिए अपने बयान से मुकर गया। उसने कोर्ट का ध्यान भटकाने के लिए यह बयान दिया कि वारदात के समय मनु के पिस्तौल से एक ही गोली चली, जो छत से जा टकराई। दूसरी गोली किसी और ने चलाई, जो जेसिका को लगी। लेकिन उस दूसरे का तो कोई अता-पता ही नहीं था। दरअसल, दूसरा कोई था ही नहीं तो पता कैसे चलता। इस बयान से फॉरेंसिक रिपोर्ट भी प्रभावित हुई। कहा गया, इसने अपना करियर बनाने के लिए मोटी रकम ली और बयान बदल दिया। इस तरह इस शख्स ने जेसिका की हत्या का इस्तेमाल अपनी तकदीर बदलने में किया।
लाश पर कई मालामाल
इसके बाद इस केस की कई सुनवाई हुई जिसमें 100 से भी ज्यादा गवाहों ने अपने बयान दर्ज कराए, लेकिन ऐसा कोई भी गवाह सामने नहीं आया, जो निर्दोष जेसिका को इंसाफ दिलाने में अपनी भूमिका अदा करे। सबों ने झूठे बयान दिए। 21 फरवरी 2006 को दिल्ली ट्रायल कोर्ट के जज एसएल भयाना ने कुल 9 अभियुक्तों को रिहा कर दिया। केस के कुल 12 अभियुक्तों में मनु शर्मा, विकास यादव श्याम सुंदर शर्मा, टोनी, आलोक खन्ना, योगराज सिंह, हरविंदर चोपड़ा, विकास गिल और राज चोपड़ा को रिहा कर दिया गया, जबकि रवींद्र कृष्ण सुडान को फरार घोषित किया गया। हालांकि अमित झिंगान को पहले ही रिहा कर दिया गया था। इस तरह करीब सौ से ज्यादा गवाहों ने झूठे बयान दिए, जिसके लिए उन्होंने मोटी रकम ली। और देखते ही देखते एक लाश पर सैंकड़ो लोग मालामाल हो गए।

अभियुक्तों की रिहाई के पीछे कोर्ट ने तर्क दिया कि
1. पुलिस उस हथियार को बरामद करने में असफल रही है, जिससे जेसिका का कत्ल हुआ।
2. वारदात के तीनों चश्मदीद-शिवलाल यादव, श्यान मुंशी व करण राजपूत के बयानों का वारदात से कोई तालमेल नहीं
3. इसके अलावा, पुलिस घटना की सभी कड़ियों को जोड़ने में असफल रही है।
इस तरह सैंकड़ो गवाहों ने बयान बदलकर केस का रुख पूरी तरह मोड़ दिया। अब इस वारदात के सभी अभियुक्त आजाद थे। बिल्कुल वैसे पंछी की तरह जिसके पर कतर दिए गए हों, लेकिन वे फिर भी उड़ने में सक्षम हो। इससे इंसाफ का आस लगाए देश के करोड़ों लोगों को जबर्दस्त ठेस लगी। न्यायपालिका के लिए यह काला दिन था ? लोगों ने पूरे देश में जगह-जगह इसके विरोध में धरना-प्रदर्शन भी किया। लेकिन फैसला तो फैसला होता है।
तहलका का खुलासा
25 अप्रैल को दिल्ली हाईकोर्ट में लोअर कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अपील दाखिल की गई। इस केस में बिल्कुल नया मोड़ तब आया, जब समाचार पत्रिका तहलका ने एक स्टिंग ऑपरेशन में स्टार न्यूज टीवी चैनल पर साफ दिखाया कि कैसे गवाह खरीदते और बेचते हैं। विजुअल में साफ दिख रहा था कि मनु शर्मा के सांसद पिता गवाहों के हाथों में लाखों रुपये देते हुए, उनसे बयान बदलने के लिए कह रहे हैं। इसके बाद तो पूरे देश में जैसे बवाल मच गया। विनोद शर्मा को अपने पद से इस्तीफा तो देना पड़ा ही साथ ही कोर्ट को मनु शर्मा के खिलाफ एक ऐसा ठोस सबूत मिल गया, जो सभी गवाह व सबूतों पर भारी पड़ा। भई, इसलिए मीडिया के खिलाफ मनु शर्मा की नाराजगी तो जाहिर है, होगी ही!
आखिर हुई न्याय की जीत
20 दिसंबर 2006 को हाईकोर्ट के जस्टिस आरएस सोढी व पीके भसीन की खंडपीठ ने 61 पन्नों के अपने जजमेंट में मनु शर्मा को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। साथ ही विकास यादव व टोनी को साक्ष्य मिटाने के आरोप में 4 साल की सजा सुनाई। अब मनु शर्मा द्वारा चिट्ठी में यह लिखना कि “मां मैंने कुछ भी गलत नहीं किया। शायद ये मेरी किस्मत थी।” अगर ऐसा है, तो क्या उन्हें न्याय नहीं मिला है। हां ! उनके कर्म के अनुसार, उन्हें सही न्याय मिला है और यह हकीकत ही उनकी किस्मत है।
चिट्ठी की हकीकत
मनु शर्मा ने कोई प्लानिंग के तहत तो हत्या नहीं की, लेकिन गुनाह तो गुनाह होता है। चाहे वह होश में किया जाए या नशे में। सरेंडर करने के पहले मां के नाम लिखी गई चिट्ठी उनके पश्चाताप को दर्शाता है, लेकिन कानून की नजर में तो सब बराबर है। सही वक्त पर अगर उन्हें सही संस्कार दिया जाता, तो शायद यह नौबत ही नहीं आती। इसीलिए अपने किए का पश्चाताप तो उन्हें हर हाल में करना ही होगा।


इतने सारे तथ्यों के बावजूद,
. इस मुजरिम के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा पैरोल के लिए पैरवी करना क्या लोकतंत्र के साथ धोखाधड़ी नहीं है ?
. जिन तीन कारणों के लिए पैरोल मांगे गए थे, दिल्ली पुलिस की जांच में वे कारण बिल्कुल झूठे और आधारहीन पाए गए। फिर शीला ने किस वजह पर पैरोल दी ?
. शीला दीक्षित ने पैरोल की अवधि भी एक महीने से बढ़ाकर दो महीने किस वजह से की ?
. मनु शर्मा के जब दिल्ली के पब में होने की सूचना मिली, तो तत्काल उनका पैरोल रद्द क्यों नहीं किया गया ?
. क्या आगे भी मनु शर्मा जैसे रसूखदारों को पैरोल मिलती रहेगी ?

सुधांशु चौहान

No comments:

Post a Comment