Thursday, January 28, 2010

अफ़जल गुरु को पद्म विभूषण !

मामला गरम है। जनता ग़ुस्से में है। सियासत के गलियारे से चली हवा से पूरा देश जैसे आक्रोश के काले बादलों से घिर गया है। हर कोई विस्मित और आक्रोशित है। लेकिन शर्मा जी इन बातों से बेख़बर अपनी धुन में मस्त हो संसद भवन के सामने से गुजर रहे हैं। उनकी नज़र में वहां के आसपास का माहौल आज शायद कुछ बदला-बदला सा दिख रहा है। रोज़ वहां मीडिया कर्मियों और उनके गन माइक के सामने अपने शासन का बखान करने वाले सत्ता पक्ष के लोगों की एक जमात होती थी, लेकिन आज सारे मीडियाकर्मी तन्हा हैं। गनमाइक तो है, लेकिन बाइट देने वाले सत्ता पक्ष के लोग दूर-दूर तक नहीं दिख रहे। कहीं-कहीं विपक्ष के लोग किसी के सामने बड़बड़ाते दिख रहे हैं। शर्मा जी आख़िर माजरा नहीं समझ पा रहे हैं। आगे बढ़ने पर कनॉट प्लेस में एक टीवी के शोरुम के सामने लोगों की भीड़ दिखाई देती है। उन्होंने सोचा शायद मैच होगा, लेकिन इधर तो कोई मैच होने वाला नहीं था। क्योंकि बांग्लादेश-भारत के बीच चल रहा टेस्ट सीरीज़ दो दिन पहले ही ख़त्म हो चुका था। फिर इतनी भीड़ किसलिए। उत्सुकता लिए शर्मा जी भी उस भीड़ में शामिल हो लिए।

लेकिन यह क्या ! सामने का दृश्य देखकर तो जैसे उनके होश फ़ाख़्ता हो गए। सामने टीवी स्क्रीन पर एक बड़े चैनल पर एक मशहूर एंकर गला फाड़-फाड़कर हैरतअंगेज़ बात बोले जा रहा था। ज़रा ग़ौर से सुनिएगा- "सरकार की बेहयाई का एक और नमूना सामने आया। संसद हमले के मास्टर माइंड अफ़जल गुरु को किया पद्म विभूषण से सम्मानित। हम आपको बताते चलें कि सरकार की यह पहली ग़लती नहीं है। इसके पहले राष्ट्रीय बालिका दिवस पर सरकार द्वारा जारी एक विज्ञापन में पाकिस्तान आर्मी के एक एक्स चीफ़ की तस्वीर छाप दी गई थी। इसके बाद बात बढ़ने पर प्रधान मंत्री की ओर से इसपर सार्वजनिक माफ़ी मांगी गई। बात यहीं ख़त्म नहीं होती। इस घटना के एक दिन पहले ही कॉमन वेल्थ गेम्स फ़ेडरेशन की आधिकारिक वेबसाइट पर जम्मू-कश्मीर और गुजरात के एक बड़े हिस्से को पाकिस्तान में दिखाया गया। बाद में इस मुद्दे पर भी माफ़ी मांगी गई।" कुल मिलाकर संपूर्ण मीडिया में हहाकार मचा हुआ था। किसी चैनल में ब्रेकिंग तो किसी में फ़्लैश। हर चैनल में सिर्फ़ यही ख़बर अपना सतरंगी रूप दिखा रही थी। इतना कुछ देखने सुनने के बाद शर्मा जी की विस्मितता अब ग़ायब हो चुकी थी। उनका मस्तिस्क अब एक वैचारिक पत्रकार की भांति काम करने लगा था। वैसे पेशे से वे भी पत्रकार ही हैं, लेकिन पत्रकारीय लक्षण कभी कभार ही दिखा पाते हैं।

खैर! फ़िलहाल वे सही दिशा में सोचते हुए घर की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। उनके दिमाग़ में अब कई बातें घूम रही है। पिछले दिनों जब सेना ने कहा कि भारत-चीन सीमा पर चीनी घुसपैठ बढ़ रही है, तो गृह मंत्रालय और सेनाध्यक्ष में ही तक़रार हो गई। बाद में सेनाध्यक्ष ने कहा कि सीमा पर सब सामान्य है। आख़िर यह कौन सी सियासत है। पहले हां, फिर ना ? एक अरब जनता के नेतृत्वकर्ता क्या ऐसी बेहूदी ग़लतियां भी कर सकते हैं! अगर ऐसा है तो क्या उन्हें सत्ता में बने रहने का अधिकार है ?  तरह-तरह के सवाल उनके दिमाग़ में आ रहे थे। घर पहुंचकर दरवाज़े पर दस्तक दी। पत्नी ने दरवाज़ा खोलकर कड़ा कटाक्ष किया 'आज देर हो गई। आज की कमाई तो लगता है लाखों में होगी। लेकिन झोला तो हल्का दिख रहा है।'  यह बात कहकर वह किचेन की तरफ़ बढ़ गई। शर्मा जी ने इस वक़्त कुछ भी बोलना मुनासिब न समझा। कंधे से झोला उतारकर टेबुल पर रखते हुए उन्होंने टीवी ऑन किया। टीवी स्क्रीन पर राष्ट्रपति मंत्रालय के कोई बड़े अधिकारी यह बयान दे रहे थे "देखिए यह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक आतंकवादी का नाम पद्म पुरस्कारों की लिस्ट में आ जाए और इसकी घोषणा भी कर दी जाए। हालांकि इस पूरे मामले की जांच के लिए एक पांच सदस्यीय समिति का गठन कर दिया गया है। जल्द ही जांच के परिणाम सामने आ जाएंगे।" इसके बाद पीएमओ के तरफ़ से भी माफ़ीनामा बयान आ जाता है। कुल मिलाकर मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की पूरी साज़िश रच ली गई है।

लेकिन यह क्या ! शर्मा जी जैसे ही झुंझलाकर चैनल बदलते हैं कि एक दूसरे चैनल पर एक ख़बर ब्रेक हो रही है। " अफ़जल गुरु के वकील ने दाख़िल की कोर्ट में याचिका, कहा पद्म विभूषण का हक़दार है अफ़जल गुरु।" इधर कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई की जाएगी। पूरा देश मंगलवार के दिन को ऐतिहासिक दिवस के रूप में देखने लगा। खैर! जल्द ही वह ऐतिहासिक दिन आ गया। जेल से निकलकर सुरक्षा के भारी-भरकम लाव लश्कर के साथ अफ़जल गुरु कोर्ट पहुंचा। कार्यवाही शुरू की गई। सरकार के वकील ने बहस की शुरुआत की। काफ़ी लंबे-चौड़े भाषण से उन्होंने जज साहब को यकीन दिलाने की भरपूर कोशिश की कि दरअसल, ग़लती से अफ़जल गुरु का नाम पद्म पुरस्कारों की लिस्ट मे चला गया था। जब अफ़जल गुरु की बारी आई, तो उसने कहा "माई लॉर्ड अपने केस की पैरवी मैं ख़ुद करना पसंद करूंगा।" जज साहब ने इसकी सहज स्वीकृति दे दी। अफ़जल ने अपनी पैरवी शुरू की। " माई लॉर्ड सरकार या मेरे विरोधी यह बताएं कि मैं पद्म विभूषण के लायक क्यों नहीं। क्या मेरे आतंकवादी होने की वजह से। अगर ऐसी बात है, तब तो बराक ओबामा भी शांति के लिए नोबेल पुरस्कार के हक़दार नहीं थे। क्योंकि उनके हाथ भी अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और फ़िजी के लोगों के ख़ून से रंगे हुए हैं। वे तो दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी हैं, लेकिन उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया। वे तो गांधी जी के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। माई लॉर्ड अगर आपको याद हो तो गांधी जी ने कहा था, घृणा पाप से करो पापी से नहीं।" जज के होंठों पर एक कुटिल मुस्कान तैर गई। इस दौरान अफ़जल की दलील जारी रही।

" माई लार्ड मैं आपको एक बात बताना चाहूंगा कि मेरे संगठन ने मुझे दिल्ली में ऐसी जगह ब्लास्ट करने का आदेश दिया था, जहां भीड़-भाड़ ज़्यादा से ज़्यादा हो। उन्होंने कहा था कि इस हमले में आम लोग सबसे ज़्यादा प्रभावित होने चाहिए। लेकिन मैंने मन ही मन यह तय किया कि आम लोगों पर हमला करना बहुत बड़ा पाप होगा। इसलिए मैंने जान हथेली पर रखकर हमले के लिए संसद जैसी जगह को चुना, ताकि आम लोगों को राहत मिल सके। वैसे भी माई लॉर्ड आपको तो पता ही होगा कि भारत भ्रष्टतम देशों की सूची में लगातार तरक्की कर रहा है। जिसमें संसद की भूमिका अहम है। संसद में ही लोग नोटों से भरी अटैचियों को पलट देते हैं। आम लोगों के ख़ून-पसीने का पैसा हर साल संसद में कार्यवाही के नाम पर फूंक दिया जाता है। जनता को इससे मिलता ही क्या है- महंगाई, भूखमरी, ग़रीबी, आत्मत्या न जाने और क्या-क्या। देश की माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार को संबोधित कर कहा था कि अगर आप जिस्मफ़रोशी को रोक नहीं सकते, तो क्यों न इसे क़ानूनी मान्यता दे दी जाए ? तो हुजूर मेरी आपसे यह दरख़्वास्त है कि आप आतंकवादियों के कार्यों और मजबूरियों के मद्देनज़र उनके लिए भी ऐसा बयान दें, ताकि आतंकवाद को भी क़ानूनी मान्यता मिले और वे बेख़ौफ़ होकर देश के मलवे को साफ़ करने के काम को देशहित में अंजाम दे सकें।" इसके बाद अफ़जल एकाएक चुप होकर एकटक जज साहब का मुंह ताकने लगा।

जज साहब उसकी मौन भाषा समझ चुके थे। थोड़ी देर मौन रखकर उन्होंने कहा कि अदालत की कार्यवाही कल तक के लिए मुल्तवी की जाती है। आज फ़ैसला सुनाने की घड़ी थी। सारा देश इस फ़ैसले के लिए बेचैन था। आख़िरकार वह घड़ी आ गई, जिसका सबको बेसब्री से इंतज़ार था। अदालत भीड़ से ख़चाखच भरी थी। जज साहब ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि तमाम जिरह और अफ़जल गुरु के दलीलों पर विचार करते हुए अदालत उनके व्यक्तित्व की सराहना करती है और सरकार से दरख़्वास्त करती है कि ऐसे व्यक्तित्व को पद्म विभूषण से सम्मानित कर इनकी मान-मर्यादा को कमतर न आंका जाए। यह अन्याय है। इसलिए अदालत सरकार से यह दरख़्वास्त करती है कि ऐसे व्यक्तित्व को पद्म विभूषण के बजाय, भारत रत्न से सम्मानित कर राष्ट्र को एक नई दिशा व दशा प्रदान करे। यह फ़ैसला सुनाते हुए जज सहब ने कलम की नींब तोड़ दी। इतना सुनकर अफ़जल गुरु के होंठो पर एक कुटिल मुस्कान दौड़ गई, जबकि सरकारी वकील ने मीडिया में यह बयान दिया कि वे इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील करेंगे।      
   
सुधांशु चौहान

3 comments:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें

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